Monday, August 08, 2005

Jhanda Kaun Kheeche :)












पन्द्रह अगस्त को परेड गा़उंड में लगा था जलजला,
सज-धज के उतरा कार से मंत्री जी का काफिला

मंत्रीजी ने संभाली तोंद से खिसकती धोती,
श्रीमतीजी ने बच्चों कि लंबी कतार समेटी

जवानों और बच्चों ने परेड में दी सलामी,
मंत्रीजी ने गर्व से तिरंगे की डोर थामी

खीचने ही वाले थे कि किसी ने पकड़ी कलाई,
भौचक्के हो पलटे, तो देखा श्रीमती थी तिलमिलाई

बोले: “ क्या करती हो अज्ञान, जगह का लिहाज़ करो ”,
श्रीमती हक से बोली: “ हटो , झंडा मुझे खींचने दो ”

मंत्रीजी हँसे, “ अरे , झंडा खीचना तुम क्या जानो ?”,
श्रीमती बोली : “ राज चलाने में मेरा योगदान पहचानो ”

मंत्रीजी बोले “ विपक्ष के हाथों कुर्सी खीचने का मुझे तजुर्बा है ”,
श्रीमती बोली “ पड़ोसन के बाल खींच, उसकी भैँस हथियाना, कोई कम अजूबा है ?”

मंतिजी बोले: “ मैंने कितने घोटालों से पैसा खीचकर घर पहुचाया है ”,
श्रीमती बोली, “ मैंने भी कुएँ में रस्सी खीचकर सोना वहाँ छुपाया है ”

"भाग्यवान, पार्टी में बच्चों को खीचकर, उनका भविश्य उज्जवल बनाया है",
"श्रीमान, मैंने भी दूसरों कि डिग्री खीचकर उनको टॉप कराया है "

झंडे को खीचने को लेकर छिड़ी हुई थी लड़ाई,
तभी झंडे में से ज़ोरदार आवाज़ आई:-

"रोको बंद करो ये एक-दूसरे की टाँग खीचना,
कितना आसान है देश की समस्याओं से आँख मीचना

खीचना ही है तो खीचो- देश से अशिक्षा, भृषटाचार, गरीबी;
सुख, समृद्धि, शांति से भर दो हर इन्सान की झोली

तभी खुले गगन में झंडा ये लहरायेगा,
स्वतंत्रता का सही अर्थ सबको नज़र आयेगा,
स्वतंत्रता का सही अर्थ सबको नज़र आयेगा !!! "


- Manya / Tanima (For Independence Day Celebration)

PS: Picture courtesy Google. 

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